बिहार के शिक्षा विभाग के पूर्व ए सी एस के के पाठक अपने कड़े और विवादित फैसले लिए अपने पूरे कार्यकाल मे चर्चा मे रहे और शिक्षक उनसे बहुत परेसान रहते थे वही शिक्षकों को अब उनकी बहुत याद आ रही है।

कड़क मिजाज IAS और बिहार शिक्षा विभाग के पूर्व ACS महोदय श्री केके पाठक जब तक बिहार के शिक्षा विभाग के ACS रहे तब तक वह हमेशा चर्चा मे रहे उनके द्वारा लिए गए कुछ फैसले ऐसे थे जिन पर काफी बवाल हुआ था जिसके कारण बिहार के बहुत सारे शिक्षक संघों ने और बहुत सारे एमएलसी में उनके खिलाफ मुहिम छेड़ दिए और उन्हे दूसरे विभाग मे भेजने के लिए आंदोलन चलाए कुल मिलाकर यह कहा जाए कि जब तक के के पाठक का दौर बिहार के शिक्षा विभाग में रहा तब तक बिहार के शिक्षक उनसे नाराज ही रहे उन्हें ऐसा लगता रहा कि के के पाठक का हर फरमान उनके अधिकारों का हनन है और उन्होंने सरकार से तरह-तरह के माध्यम से उनके हटाए जाने की मांग करने लगे। अंततः सरकार ने उन्हें दूसरे विभाग में स्थानांतरित कर दिया और उनके स्थान पर डॉक्टर एस सिद्धार्थ को शिक्षा विभाग का नया ACS बनाया गया। लोगों को लगने लगा कि अब सब कुछ सही हो जाएगा।लेकिन अभी शिक्षकों को केके पाठक की बहुत याद आ रही है तो क्या है पूरा मामला इस पोस्ट में हम लोग जानेंगे
अब याद आ रहे के के पाठक
जब तक के के पाठक शिक्षा विभाग के ACS रहे तब तक शिक्षकों से जुड़ी हर समस्या का समाधान फौरी तौर पर होता था चाहे वह BPSC के द्वारा चुने गए शिक्षकों के नियुक्ति का विषय हो या शिक्षकों के वेतन को प्रारंभ करने का मामला। जितना जल्दी उन्होंने BPSC के द्वारा चयनित शिक्षकों का वेतन जारी करवाया था उसकी उम्मीद खुद शिक्षकों को भी नहीं थी लेकिन पिछले दो महीने से अधिक समय से उन्ही शिक्षकों को अभी तक वेतन नहीं मिला है और प्रतिदिन यह कहा जाता है कि अभी ये मशीन काम नहीं कर रहा है तो अभी उसे सॉफ्टवेयर को अपडेट करने की जरूरत है। यह सभी काम और अपग्रेडेशन केके पाठक के दौर में एक दिन के अंदर हो जाया करते थे इसी कारण से शिक्षकों को केके पाठक बहुत याद आ रहे हैं।
BPSC के द्वारा चयनित तीसरे चरण के अभ्यर्थी भी कर रहे है उन्हे याद
वहीं अगर हम बात करें BPSC के द्वारा चयनित तीसरे चरण के शिक्षकों की तो उनका रिजल्ट जारी हुए भी कई महीने बीत चुके हैं लेकिन अभी तक उनके नियुक्ति का कोई प्लान विभाग के पास नहीं है। यहां तक की रिजल्ट जारी करने में भी जरूर से ज्यादा समय लग रहा था उसके बाद काउंसलिंग के लिए उन्हें लटका कर रखा गया और जब काउंसिलिंग हो गई तो फिर से रिकाउंसिलिंग के लिए उन्हें कहा जा रहा है। तो इस चरण के जो भी चुने हुए अभ्यर्थी हैं उन्हें के के पाठक की कमी बहुत ज्यादा खल रही है। उनका मानना है कि अगर के के पाठक होते तो उनकी भी नियुक्ति अब तक हो चुकी होती और वे भी किसी विद्यालय में शिक्षक के तौर पर कार्य कर रहे होते।
इस मामले में आप लोगों का क्या कहना है कमेंट कर अपना राय जरुर दें।